बोलना तो मैं जानता था,

क्या बोलना है ,मुझे मेरे गुरू ने सिखाया ।

देख तो मैं सकता था ,किसमें क्या ,और कैसे देखना है ,मुझे मेरे गुरू ने सिखाया।

चलना तो मैं जानता था ,किस राह पर चलना है ,ये मुझे मेरे गुरू ने सिखाया ।

सुनता तो मुझे पहले भी था क्या नहीं सुनना और कैसे सुनना मुझे मेरे गुरु ने सिखाया ।

झूठ किया है ,सच क्या है ,लालच क्या है ,हक़ क्या है ,ये मुझे मेरे गुरू ने सिखाया ।

ज़िंदा तो मैं पहले भी था ,पर ज़िंदगी को जीना कैसे हैं ,ये मुझे मेरे गुरु ने सिखाया ।

सच कहता हूँ ,ख़ुश हूँ,ख़ुशहाल हूँ ,जबसे मैंने मेरे गुरु की बातों को जीवन में अपनाया।

रिश्ते क्या है ,इंसान क्या है ,अहंकार क्या है ,ज्ञान क्या है ,धरती और असमान क्या है, इनका महत्व समझाया ।

समाज के लिए क्या फ़र्ज़ है ।ये मुझे मेरे गुरू ने बताया ।यह गुरू कभी माँ के रूप में ,

तो कभी बाप के रूप ,में कभी अध्यापक के रूप में ,कभी अनजान आदमी के रूप ,में मेरी ज़िंदगी में आया ।आज तक कोई ऐसा इंसान नहीं जिसने बिन गुरू हो सब कुछ हो पाया।

गुरु पूर्णिमा के दिन चीमे ने तो गुरुओं के सामने है सीस झुकाया ।